प्राचीन काल में हरिश्चंद्र नामक एक राजा थे। उनकी सत्यवादी परोपकार दान और त्याग की चर्चा सर्वोच्च थी। उनके राज्य में सुख और शान्ति थी।उनकी पत्नी का नाम तारामति और बेटे का नाम रोहिताश्व था।एक बार देवराज इंद्र की प्रेरणा से मुनि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र की सत्यवादिता और दानशीलता की परीक्षा लेने का निश्चय किया।
दूसरे दिन महार्सी विश्वामित्र राजा के दरबार में उपस्थित हुए उन्होंने महाराज को स्वप्न में दिए गए दान के बात याद दिलाई राजा को सारी बात याद आ गई और उन्होंने महर्षी विश्वमित्र को भी पहचान लिया अब विश्वमित्र ने राजा से दक्षिणा मांगी राजा ने मंत्री से दक्षिणा देने के लिए राजकोष धन मंगवाया तो विश्वमित्र बोल उठे जब तुमने सारा राजदान में दे दिया तब राजकोष तुम्हारा कैसे रहा या तो हमारा हो गया अब तुम उसमें से कुछ भी दक्षिणा नहीं दे सकते।
विश्वमित्र द्वारा कही गई बातें बिल्कुल सच थी हरिश्चंद्र सोच में पड़ गए उनके पास दक्षिणा देने के लिए कुछ भी नहीं था उनके द्वार से कोई भी मुनि बिना दक्षिणा लिए चला जाए यह संभव नहीं था हरिश्चंद्र ने अपने आप को बेचने का निश्चय किया।
राजा को श्मशान घाट के मालिक कालू नामक डोम ने खरीद लिया। तारामती और रोहिताश को एक ब्राह्मण ने खरीदा इस प्रकार राजा ने प्राप्त धन से विश्वामित्र को दक्षिणा दे दी राजा अपनी रानी व पुत्र से अलग हो गए तारामती जो पहले स्वयं महारानी थी अब ब्राह्मण के घर में बर्तन मांजने और चौका लगाने का काम करने लगी राजा शमशान घाट पर पहरा देने लगे । जो लोग श्मशान घाट पर लासो को जलाने आते थे वे उनसे कर लेने का कार्य करते थे।
1 दिन तारामती के साथ एक दुख भरी घटना घटित हो गई उनका पुत्र रोहिताश प्रतिदिन की तरह बगीचे में फूल तोड़ने गया था कि अचानक एक विषैला सर्प निकला और उनके रोहिताश को डस लिया पुत्र की मौत हो गई तारामती के लिए दुख असहनीय था। उसके पास तो पुत्र के कफन के लिए भी पैसे ना थे।
वह रोती बिलखती अपने पुत्र को गोद में लेकर उसके अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट पर पहुंची हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी और पुत्र को पहचान लिया । किंतु इस संकट में भी उन्होंने अपना धैर्य नहीं छोड़ा उन्होंने तारामती से शमशान का कर मांगा तारामती के पास तो कर देने के लिए कुछ भी नहीं था वह उनसे प्रार्थना करने लगे हरिश चंद ने कहा मैं अपने मालिक की आज्ञा के विरुद्ध कुछ भी नहीं कर सकता तुम्हे इंसान का कर अवश्य देना पड़ेगा उस पर से कोई मुक्ति नहीं हो सकता लेकिन यदि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है तो तुम अपनी साड़ी का आधा भाग फाड़ कर दे दो मैं उसे ही कर के रूप में ग्रहण कर लूंगा।
विवश होकर तारामती ने जैसे ही अपनी साड़ी को फाड़ना शुरू किया विश्वामित्र और अन्य देवता प्रकट हो गए विश्व मित्र ने हरीश चंद से कहा तुम्हारी परीक्षा ले जा रही थी कि तुम किस हद तक सत्य और धर्म का पालन कर सकते हो।
विश्व मित्र ने हरिश्चंद्र और तारामती के धैर्य दान शीलता और सत्यवादिता की प्रशंसा की।
उन्होंने उनके पुत्र रोहिताश्व को जीवित कर दिया और उनका पूरा राज्य लौटा दिया राजा हरिश्चंद्र अपनी सत्यता और दान शीलता के लिए अमर हो गए।
दोस्तों कैसी लगी सत्यवादी हरिश्चंद्र की कहानी हमें आप कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताइएगा।
Hi
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